आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल - 7
Recap : अब तक आपने पढ़ा कि आकांक्षा और जानवी को इंस्पेक्टर दुबे से मिली किताबों से पिशाचों के बारे मे कुछ जानकारी मिलती है। वो दोनो किताबें लौटाने वापिस पुलिस स्टेशन आई थी। इंस्पेक्टर दुबे व्यस्त होने के कारण कुछ देर के लिए चले गए और जाते वक्त उन दोनो एक बार फिर किताबों को ध्यान से देख लेने के बारे कहा, क्योंकि भविष्य में उन्हें वो किताबे वापस नहीं मिल पाएगी। जब आकांक्षा जानवी के द्वारा पढ़ी गई पुस्तक के पन्ने उलट रही थी, तभी उसका ध्यान खून से लिखे हुए कुछ अक्षरों पर गया। उन अक्षरों पर हाथ रखते ही उसे फिर से कुछ दृश्य दिखाई देने लगे और अन्नायास से उसके मुंह से " राजकुमार रीवांश " का नाम निकला।
अब आगे......
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आकांक्षा के मुंह से राजकुमार रीवांश का नाम सुनकर जानवी हैरानी से उसे देखने लगी। जबकि आंखें बंद करके उन दृश्यों को देखने के बाद आकांक्षा का सिर बुरी तरह चकराने लगा। "जानवी मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है।" उसने बिल्कुल धीमी आवाज़ में सिर पकड़कर बोला,"मुझे चक्कर आ रहे हैं। ऐसे लग रहा है.... जैसे आंखों के आगे अंधेरा छा गया हो। जानवी..... जा.... नवी....!"
जानवी उसे बीमार देख बुरी तरह घबरा गयी, "क्या हुआ तुझे अक्षु? मैंने पहले ही कहा था कि इन सब बकवास के पीछे नहीं भागते हैं। यह सब चीजें हमारी पहुंच से परे हैं।" जानवी ने उसे पानी पकड़ाया, "तू पहले ये पानी पी, फिर हम यहाँ से घर चलते हैं और छोड़ते हैं इन सब झंझटों को।"
आकांक्षा ने पानी पीया। आकांक्षा अक्सर बन्द आंखों से देखे विजुअल्स को भूल जाती थी और अभी थोड़ी देर पहले उसके साथ जो भी हुआ, उसे वो कुछ भी याद नहीं था।
"मैंने कुछ कहा जानवी, तूने सुना क्या?" आकांक्षा ने सिर पकङकर पूछा, "मुझे कुछ याद नहीं आ रहा। मैं इन अक्षरों को फिर से छू कर देखती हूं।"
जैसे ही आकांक्षा ने उस किताब के अक्षरों को छूने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, जानवी ने तुरन्त किताब बंद करते हुए कहा, "अब तू इस किताब को हाथ भी नहीं लगाएगी। चल चलते हैं यहां से.... हमें कुछ पता नहीं लगाना..... ना किसी पिशाच के बारे में और ना ही किसी राजकुमार रीवांश के बारे में...!" हड़बड़ाहट में उसके मुंह से राजकुमार रीवांश का नाम निकल गया।
"हाँ राजकुमार रीवांश..... यही नाम था.... शायद वो जंगल में हो। मैने इसी का नाम ही तो बोला था।"
"हे भगवान ! ये लड़की खुद भी मरेगी और मुझे भी मरवाएगी।" जानवी उसका हाथ पकड़कर उसे वहाँ से ले जाने लगी, "मुझे कुछ पता नही लगाना। तू घर चलेगी..... अगर तूने मेरी बात नही मानी तो.... तो मै दद्दू को सब सच सच बता दूँगी। "
"मैं घर चल लूंगी, लेकिन तू मुझे दद्दू का नाम लेकर ब्लैकमेल मत कर। तुझे पता है ना मेरी आदत कि एक बार जब मै किसी......."
जानवी ने उसकी बात काटते हुए कहा, "हां हां मेरी मां..... मुझे सब पता है कि एक बार आकांक्षा मैडम अगर किसी चीज के पीछे पड़ जाए, तो जब तक उसकी बाल की खाल ना निकाल ले.... तब तक उन्हें चैन कहाँ मिलता है।"
"बिल्कुल सही कहा। चल अब घर चलते हैं और वहां जाकर आगे का प्लान बनाते हैं..... और खबरदार अगर तूने दद्दू को कुछ भी बताया। वरना मैं भी बता दूंगी कि कैसे उन्हें तू उनको बेवकूफ बनाकर मेरा फोन घर पर रखवा कर मुझे सब जगह लेकर जाती है।" आकांक्षा ने झूठा गुस्सा दिखाया।
जानवी ने जाते समय एक हवलदार से कहा, "सर हम लोग जा रहे हैं। ये कुछ किताबें हैं, वो आप दुबे अंकल को दे दीजिएगा।"
"ठीक है..... आप यह किताबें यहीं रख दीजिए। दुबे सर अभी आते ही होंगे। जब वह आएंगे तो मैं उन्हें बोल दूंगा।" हवलदार ने जवाब दिया।
आकांक्षा और जानवी वहाँ से सीधे घर पर आ गयी। घर पर उन्होंने देखा कि राजवीर जी दरवाजे के बाहर उनका इंतजार करते हुए इधर से उधर चक्कर लगा रहे थे। उनके चेहरे पर परेशानी के भाव थे।
उन दोनो को देखते ही राजवीर जी ने नाराजगी जताते हुए कहा, "आ गई तुम दोनों? मैं देख रहा हूं, आजकल तुम दोनों का ध्यान पढ़ाई में कम और इधर उधर की बातों में ज्यादा रहता है। जानवी, कब वापिस आ रहे हैं तुम्हारे मम्मी पापा? देखो मैं अक्षु को अब और तुम्हारे पास यहां नहीं छोड़ सकता। अगर तुम्हें अकेले डर लगता है, तो तुम हमारे घर पर रहने आ जाओ।"
"दद्दू उन्हें तो आने में अभी एक हफ्ता और लग जाएगा और मैं आपके घर पर रहने के लिए नहीं आऊंगी। आपका घर जंगल के पास है और जंगल में पि..! " जानवी बोलते हुए रुक गयी।
"भले ही हमारा घर जंगल के पास हो जानवी, लेकिन जंगली जानवर हमारे घर पार्टी मनाने नहीं आते हैं। ऐसा कर ना तू अपना घर लॉक कर दे और अपना सामान लेकर 1 हफ्ते तक हमारे घर पर रहने के लिए आ जा।" आकांक्षा ने बात को संभाला।
"हां जानवी, अक्षु बिल्कुल ठीक कह रही है।" राजवीर जी ने आकांक्षा की हाँ मे हाँ मिलाई।
"ओके दद्दू, मै मम्मी को पूछकर बताती हूँ कि क्या करना है।" कहकर जानवी अपनी मम्मी को फोन करने के लिए अंदर कमरे में चली जाती है, जबकि राजवीर जी और आकांक्षा अभी भी हॉल में बैठे थे।
राजवीर अपने मोबाइल मे कुछ देख रहे थे, जबकि आकांक्षा के ख्यालों मे अभी तक पिशाचों से जुड़ी बाते चल रही थी।
"कौन हो सकता है यह राजकुमार रीवांश? ना चाहते हुए भी मेरा ध्यान बार-बार वही पर जा रहा है। कैसे पता लगाऊं इसके बारे में? इंटरनेट पर कुछ मिल सकता है क्या?"
"अक्षु...." राजवीर जी की एक बार बुलाने पर आकांक्षा ने ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने थोड़ा जोर से बोला, "अक्षु.....!"
"जी दद्दू ..! " उनकी आवाज से आकांक्षा का ध्यान टूटा और उसने हड़बड़ा कर जवाब दिया।
" किसके ख्यालों में खोई हुई है ? तेरी तबीयत तो ठीक रहती है ना आजकल .... या फिर से वही अजीब अजीब सपने आते रहते हैं?"
राजवीर जी की बात सुनकर आकांक्षा ने सोचा, "दद्दू वो सब मेरे सपने नहीं है, बल्कि एक ऐसी हकीकत है, जिससे मैं चाह कर भी नहीं भाग सकती।"
आकांक्षा राजवीर जी को कुछ जवाब देती, उससे पहले जानवी वहां पर आकर बोली,"दद्दू...अक्षु , मम्मा ने मुझे परमिशन दे दी है, आप लोगों के साथ रहने के लिए। लेकिन उन्होंने कहा है कि दिन में एक बार मैं घर पर आकर, यहां सब कुछ ठीक है...यह चेक करूं।"
"फिर जल्दी से अपना सामान लेकर आ जाओ। हम चलते हैं।" राजवीर के कहते ही जानवी ने झट से जवाब दिया, "मेरा सामान रेडी है दद्दू.... चलिए चलते हैं।"
" तुम दोनों घर लॉक करके आओ, तब तक मैं कार बाहर निकालता हूं।"
आकांक्षा–"दद्दू आप चले जाइए.... हम दोनों स्कूटी से आ जाएंगे। बस आप जानवी का सामान अपने साथ में ले जाइए।"
"ठीक है.... लेकिन 10 मिनट के अंदर तुम घर पहुंचोगी। पता है ना, यहां से हमारा घर सिर्फ 15 - 20 मिनट की दूरी पर ही है। तो बेवजह कहीं पर भी नहीं रुकना है।" राजवीर ने सख्ती से कहा।
"जी दद्दू, हम सीधे घर ही आएगे। जानवी, तु दद्दू को अपना बैग लाकर दे दे।"
आकांक्षा के कहते ही जानवी ने अपना सामान राजवीर जी को लाकर दे दिया, जिसे लेकर वो तुरंत वहाँ से चले गए।
उनके जाते ही जानवी ने पूछा,"अक्षु तूने दद्दू को पहले घर पर क्यों भेजा ? जरूर तेरे दिमाग में कुछ खिचड़ी पक रही है। देख मैं पहले ही बता रही हूं, मैं कोई जंगल वंगल में नहीं जाने वाली हूं।"
"जंगल नहीं, मोहन दास जी के पास.... मैं राजकुमार रीवांश के बारे में पता लगाना चाहती हूं। हो सकता है उन्हें इस बारे में कुछ पता हो.... उन्होंने काफी सारी किताबें पढ़ी है, तो इस राजकुमार के बारे में भी कहीं ना कहीं तो पढ़ा ही होगा।"
जानवी– "और दद्दू को क्या बोलेगी? उन्होंने अभी-अभी कहा था कि 10 मिनट के अंदर हम घर पहुंचे।"
"मैं दद्दू को बोल दूंगी कि हम लाइब्रेरी जा रहे हैं। देख इससे पहले कि हमें उस दिन की तरह आने मे लेट हो जाए .... पहले हम लाइब्रेरी जा कर आते हैं।" आकांक्षा ने कहा।
"ठीक है। लेकिन इस बार दद्दू को फोन तू करेगी। मुझे उनसे बहस नहीं करनी।"
आकांक्षा ने राजवीर जी को फोन करके उनसे लाइब्रेरी जाने की परमिशन ली। राजवीर जी ने पढाई लिखाई के मामले मे उसे कभी कही जाने से नही रोका।
आकांक्षा और जानवी बिना देर किए मोहन दास गुप्ता जी से मिलने लाइब्रेरी पहुँच गई।
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शाम के 4 बज रहे थे। आसमान सूरज की रोशनी से जगमगा रहा था।
भले ही जंगल के बाहर सूरज की रोशनी चारों तरफ छाई हुई थी. ... लेकिन जंगल के अंदर अभी भी वही घनघोर अंधेरा था। मानो रात के 12:00 बज रहे हो। यह कह पाना मुश्किल था कि वह अंधेरा सूरज की किरण ना पहुंचने की वजह से था.... या फिर वहां पर रहने वाली काली शक्तियों की वजह से। उस जंगल में काफी सारी अलग अलग प्रकार की काली शक्तियां निवास करती थी।
जंगल मे रीवांश, रघु, रवि, विजय और संजय के अलावा भी बहुत सारे पिशाचों का डेरा था। उन चारों ने सभी पिशाचों को वहां पर इकट्ठा कर रखा था।
विजय ने गुर्राते हुए सबको सम्बोधित किया, "आखिर कब तक आप लोग उस रीवांश की गुलामी करोगे। अगर हम सब एक हो जाए, तो उसे हराने में एक मिनट भी नहीं लगेगा।"
"तुम सब लोग समझते क्यों नहीं..... हम बहुत सारे हैं और वो अकेला। हम सब के सामने वह कुछ नही कर सकेगा। भले ही वह शक्तिशाली है, लेकिन जब अकेला होगा तो उसे हराना आसान होगा।" संजय ने विजय की बात को आगे बढ़ाते हुए बोला। वो चारों जंगल के पिशाचों को रीवांश के खिलाफ भड़का रहे थे।
रघु– "उसे बहुत घमंड है खुद पर कि वह एक राजघराने से संबंधित है और खुद को हम सब का राजा मानता है। अरे अब कोई राजघराना नहीं रहा। वक्त बदल गया है।"
"और हम कोई इंसान नहीं जो राजघराने की परंपरा का अनुसरण करें। हम पिशाच हैं....... हम सब सिर्फ एक के ही गुलाम हैं और वो है शैतान। फिर पता नहीं क्यों तुम सब लोग उस रीवांश से डरते हो? अगर हम सब एक हो जाए तो उसे हराना बहुत आसान होगा। पता नहीं तुम लोग समझते क्यों नहीं इस बात को...!" रवि ने बात खत्म की।
पिशाचों का नेतृत्व करते हुए, भीड़ मे से सबसे बुजुर्ग पिशाच जीवन बोला, "देखो बेटा, जब रीवांश ने हमारा कुछ बिगाड़ा ही नहीं है, तो हम क्यों बेवजह उससे दुश्मनी मोल ले। जंगल के सारे पिशाच जानते हैं कि तुम चारों के मन में हमेशा से ही कुटिलता रही है। अरे जलते हो तुम उससे, तो अपनी कुनीतियों को हमारे जरिये तो पूरा करने की मत ही सोचो। हे..!" जीवन ने अपनी सफेद दाढी को बल दिया।
उसकी हाँ मे हाँ मिलाते हुए एक और पिशाच बोला, "देखो दादा, भले ही वो अकेला होगा.... लेकिन हम सब पर भारी है। कल रात को भी तुम चारों ने मिलकर उस पर हमला किया था ना। क्या परिणाम निकला? फिर मुंह की खा कर आ गए. ... खुद तो आए दिन उससे जख्मी होते ही रहते हो। अब तुम क्या चाहते हो कि हम सब भी जख्मी होकर जंगल के किसी कोने में पड़े रहें। एह ना चालबे..!"
उनकी बात सुनकर रवि गुस्से मे गुर्राते हुए बोला, "अरे कल रात को सिर्फ हम चार थे.... और अगर हम सारे साथ मिल जाए तो मिलकर उस रीवांश को जरूर हरा देंगे।"
जीवन ने फिर सबकी तरफ से अगुवाई की, "पर बेटा उनको हराना ही क्यों है ? यह जंगल हम सब का घर है। अगर तुम लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आए, तो हम सब लोग मिलकर तुम चारों को इस जंगल से बाहर फेंक देंगे। फिर पता है ना क्या होगा तुम लोगों के साथ?"
सारे पिशाच जीवन की हां में हां मिला रहे थे, तो उनकी बातें सुनकर रवि, रघु, संजय और विजय को गुस्सा आने लगा।
संजय ने गुस्से मे गुर्राते हुए कहा, "तो करते रहना उसकी उम्र भर गुलामी, और अनंतकाल तक छोटे मोटे पिशाच बनकर रहना।"
संजय अपनी बात बोल ही रहा था, कि तभी रीवांश वहाँ आया। उसने उन लोगो की सारी बाते सुन ली थी। गुस्से मे उसने अपने शरीर का विशाल रूप धारण किया और संजय का गला पकड़ कर उसे किसी खिलौने की भाँति अपने हाथ मे जकड़ लिया।
"और कितना गिरोगे तुम चारों.... छल, कपट, लालच, ईर्ष्या, सब कूट कूट कर भरे है तुम चारो मे... तुम जब इंसान थे, तब भी किसी पिशाच से कम नही थे।" रीवांश का गुस्सा उसकी आँखों मे खून बन कर उतर आया था।
संजय घुटे स्वर में बोला,"छ....छोड़ो.....मुझे.....!"
संजय को मुसीबत मे देख रवि, रघु और विजय ने एक साथ रीवांश पर हमला बोल दिया। भले ही वो एक दूसरे को पूर्णतया खत्म नही कर सकते थे, लेकिन एक पिशाच के दिए जख्म काफी गहरे होते थे। उनका दर्द काफी असहनीय होता था।
रीवांश को मुसीबत मे देख जीवन ने बाकी पिशाचों को आदेश दिया, "आक्रमण...!" और इसी के साथ सारे पिशाच झुंड मे उन तीनो पर टूट पड़े।
"तुम चारो को ये अंतिम चेतावनी है.... अगर फिर से कभी ऐसा किया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।" जीवन जोर से गुर्राया।
रीवांश ने संजय को फैंकते हुए कहा, "हम से उलझ कर कोई फायदा नही है।" वो उनकी बेवकूफियों पर हंसते हुए बोला, "कितने बेवकूफ हो तुम चारों, बार बार मुँह की खाने के बाद भी हमसे टकराने आ जाते हो।"
जीवन– "युवराज आप का हाथ जख्मी हो गया है। अगर इसका तुरंत इलाज नही किया गया, तो जख्म नासूर ना हो जाए। आप आप फिक्र ना करे.... इन कपटियों के लिए हम काफी है। आप पहले जाकर इस पर जड़ी बून्टी का लेप लगाए।"
जीवन की बात सुनकर रीवांश अगले ही पल हवा की तरह वहां से गायब हो गया। उसके जाते ही, जंगल के बाकी पिशाचो मे उन चारो को एक बड़े जादुई पिंजरे मे कैद कर दिया।
इस पिंजरे में अक्सर उन्हीं पिशाचों को कैद किया जाता था, जो बगावत पर उतर आते थे। उसके चारों तरफ जादूई सलाखे लगी हुई थी, जिन्हें छूने भर से कोई भी पिशाच पूरी तरह जख्मी हो सकता था।
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कुछ देर बाद आकांक्षा और जानवी लाईब्रेरी पहुची। वह जाते ही, वो दोनो सबसे पहले उस कमरे मे गई, जहां मोहनदास के बैठा करते थे।
मोहनदास जी ने उन दोनो को देखते ही पहचान लिया।
"तुम दोनों फिर आ गई ...और यही वक्त मिलता है क्या तुम्हें आने का? वापिस जाते वक्त डर नहीं लगेगा?"
आकांक्षा ने बात घुमाए बिना सीधे पूछा, "नहीं अंकल... हमें आपसे एक बहुत जरूरी बात करनी थी।"
"अंकल क्या आप जानते हो कि जो लड़का यहां से वह तीन पिशाच वाली किताबें लेकर गया था, उसका खून हो चुका है।" जानवी ने हड़बड़ाकर कर बोला।
मोहनदास जी– " हां पता है। आज सुबह ही पुलिस पूछताछ के लिए आई थी। वह तीनों किताबें अभी भी पुलिस के पास है .... और उन्होंने मामला निपटने पर वो किताबें वापस लाइब्रेरी में जमा करवाने का भी बोला था। लेकिन तुम दोनो इतनी घबराई हुई क्यों लग रही हो?"
"अंकल आप पूरी बात नहीं जानते। हमने वो किताबें इंस्पेक्टर दुबे से पढ़ने के लिए मांगी थी। उनमें से एक किताब में खून से किसी राजकुमार रीवांश का नाम लिखा हुआ था।" आकांक्षा ने जवाब दिया।
जानवी– "क्या आप जानते हो कि राजकुमार रीवांश कौन था? कहां का राजकुमार था?"
"इस दुनिया में ना जाने कितने राजकुमार रीवांश होंगे.... लेकिन हां यहां लाइब्रेरी में बिलासपुर रियासत के राजा जय प्रताप सिंह के बारे में भी कुछ पुस्तके है..... उनके बेटे का नाम भी रीवांश प्रताप सिंह था। बिलासपुर के आस पास के गांव में भी राजकुमार रीवांश के बारे में कुछ बातें फैली हुई है। अब उन बातों में कितनी सच्चाई है, यह तो ऊपर वाला ही जाने।" मोहनदास जी उन्हे जवाब दिया।
" कौन सी बातें?" आकांक्षा ने हैरानी से पूछा।
मोहनदास जी ने हंस कर जवाब दिया, "तुम दोनो तो बिल्कुल पुलिस की तरह पूछताछ कर रही हो। मुझे ज्यादा कुछ नहीं पता लेकिन मैं तुम्हें कुछ किताबें देता हूं। उनके जरिए तुम्हें पता चल जाएगा। मैंने वह किताबें बहुत पहले पढ़ी थी। इसलिए मुझे सारी बातें याद नहीं है।"
"ओ नो.. फिर से किताबें.. प्लीज नहीं, वरना फिर से पूरी रात ये मुझे बैठाकर वह किताबें पढवाएगी।" जानवी ने मुँह बनाकर कहा।
आकांक्षा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "हां तो अच्छा ही है ना..... थोड़ा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा।"
"मैंने कल भी कहा था और आज भी बोल रही हूं कि अगर इतना मैंने अपने सिलेबस की किताबों को पढ़ा होता, तो आज कोई अच्छी नौकरी मिल गई होती।" जानवी ने झुंझला कर कहा।
आकांक्षा को उसे देखकर हंसी आने लगी।
"अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। वो तो तू अभी पढ़ कर एक अच्छी सी नौकरी लग सकती है।"
"अच्छा बच्चीयों, बहस बन्द करो। चलो ऊपर लाइब्रेरी में चलते हैं। वहां पर कुछ किताबें मिल जाएगी।" मोहनदास जी उठते हुए कहा।
वो उन दोनों के साथ ऊपर लाइब्रेरी की किताबो वाले सेक्शन में गए। उन्होंने वहाँ से एक किताब उठाकर उसका शीर्षक पढा, "बिलासपुर और कुछ किवदंतीयां!" मोहनदास जी मे वो किताब आकांक्षा को पकड़ाते हुए कहा, "यह किताब बिलासपुर में फैली हुई कुछ किवदंतियों के बारे में है। जिसे एक व्यक्ति ने अपने रिसर्च के आधार पर लिखा था। इसे जरूर पढ़ना। शायद इसमें तुम्हें कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सके।"
आकांक्षा ने खुश होते हुए कहा, "थैंक यू सो मच अंकल.! आपने हमारी बहुत मदद की है।"
मोहनदास जी ने जवाब दिया, "वोतो ठीक है बच्चों। लेकिन किसी मुसीबत में मत पड़ जाना। हो सकता है कि इन किताबों में लिखी कुछ बातें सच हो.... और कुछ सच के पीछे जाना या उनके बारे में पता लगाना बहुत खतरनाक साबित होता है।"
उनकी बात सुनकर जानवी ने जवाब दिया, "एक्जेक्टली अंकल, पिछले 2 दिनों से मैं इसे यही समझा रही हूं कि कुछ चीज़े हमारी पहुंचे से परे होती है।"
मोहन दास जी ने बुक रेंक से एक और किताब निकालते हुए बोला, "और यह किताब महाराजा जयप्रताप सिंह जी के राजघराने के ऊपर है। इसे भी रख लो.... लेकिन मेरी बातों को भी याद रखना।"
"जी जरूर अंकल.... अच्छा अब हम चलते है। ये किताबें हम आपको दो दिन बाद वापिस लौटा देंगे" आकांक्षा ने कहा।
"ठीक है, लेकिन जाते वक्त रजिस्टर में अपना नाम एड्रेस और फोन नंबर लिखवा देना।"
आकांक्षा ने हाँ मे सिर हिलाया। वो और जानवी मोहनदास जी से वह किताबें लेकर घर पहुँची।
घर आते ही आकांक्षा उस किताब के आखिरी पन्ने पर बने चित्र को देख रही थी कि उसे छुते उसे फिर से कुछ दृश्य दिखाई देने लगे।
क्रमशः....!
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#उपन्यास
#वेब
Art&culture
03-Jan-2022 11:58 PM
Very nice story
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Arshi khan
21-Dec-2021 11:17 PM
Very good story...
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